देर रात अस्पताल के बाहर दर्द से करहाती रही गर्भवती महिला, किसी ने नहीं सुनी गुहार : मैं हूँ फरीदाबाद

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देर रात अस्पताल के बाहर दर्द से करहाती रही गर्भवती महिला, किसी ने नहीं सुनी गुहार : मैं हूँ फरीदाबाद :- नमस्कार! मैं फरीदाबाद और आज मैं आप सबको एक सच्ची घटना के बारे में बताने आया हूँ। कल देर रात 10 बजे के करीब मेरे प्रांगण में मौजूद सरकारी अस्पताल के बाहर मैंने इंसानियत को मरते हुए देखा। कल रात एक गरीब ऑटो चालाक होरी राम अपने भाई और उसकी गर्भवती पत्नी को बीके अस्पताल लाया।

गर्भवती महिला को प्रसव पीड़ा हो रही थी। अस्पताल पहुंचते ही होरी राम ने आनन फानन में अस्पताल के मुख्य द्वार पर मौजूद गार्ड से मदद मांगी पर उसे कोई मदद नहीं मिल पाई। फिर वह जल्दी से अस्पताल परिसर के अंदर जाकर वॉर्ड बॉय और नर्स से मदद की गुहार लगाने लगा पर फिर भी उसे किसी तरह की मदद अस्पताल प्रशासन से नहीं मिल पाई।

देर रात अस्पताल के बाहर दर्द से करहाती रही गर्भवती महिला, किसी ने नहीं सुनी गुहार : मैं हूँ फरीदाबाद
Auto driver: file photo

अंततः उसके भाई की पत्नी ने ऑटो में ही अपने पहले बच्चे को जन्म दिया। इस गरीब परिवार की मदद के लिए एक भी हाथ आगे नहीं आया। एक पत्रकार को होरी ने बताया कि अस्पताल से उन्हें किसी भी तरह की मदद नहीं मिल पाई है। जन्म के बाद बच्चे को टीका लगना अनिवार्य है परंतु अभी तक उनके परिवार के नवजात को टीका नहीं लग पाया है।

देर रात अस्पताल के बाहर दर्द से करहाती रही गर्भवती महिला, किसी ने नहीं सुनी गुहार : मैं हूँ फरीदाबाद

कोरोना काल में जहां सब साफ सफाई लेकर सक्रीय हो रहे हैं। वहीं दूसरी ओर मेरे प्रांगण में मौजूद सरकारी अस्पताल लोगों की ज़िंदगी के साथ खेलने पर आमादा हैं। पत्रकार से बात करते हुए होरी ने बताया कि गर्भवती महिला और बच्चा दोनों सुरक्षित हैं।

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साथ ही साथ उसने बताया कि अस्पताल आ रहे किसी भी मरीज को मास्क नहीं मिल पा रहा है। उसके भाई की पत्नी और नवजात को भी बिना मास्क के ही अस्पताल में भर्ती कर लिया गया था। अब सवाल यह है कि क्या होता अगर बच्चे के जन्म के दौरान कोई बड़ी बाधा आ जाती ? क्या अस्पताल प्रशासन इस भूल की जिम्मेदारी लेता ? होरी और उसके परिवार जैसे न जाने कितने लोग हैं जिनके पास निजी अस्पताल में इलाज करवाने के पैसे नहीं है। क्या उन लोगों की जान की कोई कीमत नहीं है ?