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भारत का यह गांव क्यों कहलाता है दामादों का गांव, जानिये रोचक इतिहास

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आपने अपनी ज़िंदगी में बहुत कुछ अजीबों – गरीब देखा होगा, सुना होगा। वैसे तो लड़कियां शादी के बाद ससुराल चली जाती हैं और अपनी बाकी जिंदगी वहीं बिताती हैं। लेकिन भारत में एक कोना ऐसा भी है, जहां शादी के बाद लड़कियां ससुराल नहीं जाती बल्कि दामाद ही लड़की के घर आकर रह जाता है। उत्तर प्रदेश के कौशांबी जिले में स्थित इस गांव का नाम हिंगुलपुर है। हिंगुलपुर को दामादों का पुरवा यानी दामादों के गांव के तौर पर भी जाना जाता है।

भारत में अनेकों प्रकार के लोग हैं, बहुत प्रकार की कहानियां हैं। ऐसा भी समय था जब हिंगुलपुर गांव कन्या भ्रूण हत्या और दहेज हत्या में बहुत आगे था, लेकिन आज के समय में इस गांव ने अपने बेटियों को बचाने के लिए अनूठा तरीका अपनाया है।

भारत का यह गांव क्यों कहलाता है दामादों का गांव, जानिये रोचक इतिहास

दहेज की प्रथा सदियों पुरानी है हम सभी को इस से बचना चाहिए। दशकों पहले यहां गांव के बुजुर्गों ने लड़कियों को शादी के बाद मायके में ही रखने का फैसला किया। गांव का मुस्लिम समुदाय भी इस तरीके को अपना लिया है। हिंगुलपुर गांव की लड़कियों रिश्ते की बात में ये एक अहम शर्त होती है।

भारत का यह गांव क्यों कहलाता है दामादों का गांव, जानिये रोचक इतिहास

किसी भी रिश्ते में यूँ तो शर्ते नहीं होनी चाहिए, लेकिन यहां कुछ शर्ते होती हैं। गांव में रहने आ रहे दामाद को रोजगार की भी दिक्कत ना हो, इसका बंदोबस्त भी गांव के लोग मिलकर करते हैं। हिंगुलपुर गांव में आसपास के जिलों जैसे कानपुर, फतेहपुर, प्रतापगढ़, इलाहाबाद और बांदा के दामाद रह रहे हैं। इस गांव की विवाहित लड़कियां अपने पतियों के साथ घर-गृहस्थी बसा लिया है। इतना ही नहीं यहां एक ही घर में दामादों की पीढ़ियां बसी हुई हैं।

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भारत में विवाह को बहुत ही बड़ा बंधन माना गया है। हमारे देश भारत में हिंगुलपुर केवल ऐसा अकेला गांव नहीं है। मध्यप्रदेश के नरसिंहपुर जिला मुख्यालय के पास भी ऐसा ही एक गांव है, जहां दामाद आकर रहने लगते हैं। यहां का बीतली नामक गांव जमाइयों के गांव के नाम से मशहूर है।

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