नमस्कार! मैं फरीदाबाद आज अपने आहत हुए मन से आप सभी के सामने कुछ कहने के लिए आया हूँ। मैं कुछ दिनों से हरियाणा से जुड़ी मेरी ज़मीन पर हो रही कम्पन को महसूस कर रहा हूँ। सुना है कि यह किसानों के पैरों का बल है जिसने सुस्त पड़े प्रशासन को जगाने का बीड़ा अपने कन्धों पर उठाया है।
अब आप सोच रहे होंगे कि मैं इतना स्वार्थी होकर बात क्यों कर रहा हूँ। पर क्या करूँ जब अपने अन्नदाता को टूटता हुआ देखता हूँ तो मेरा मन पसीज जाता है। सोचने वाली बात यह है कि जब कृषि कानूनों में कोई खोट नहीं है तो सरकार के हाईकमान नेतागण और इस देश के निजाम इन किसानों से बात करने में कतरा क्यों रहे हैं ?
हद तो तब हो जाती है जब कुछ बेगैरत इन किसानों को आतंकी बोलते हैं। अरे जरा सोचो आतंकी होते तो अपने आंदोलन में पुलिसकर्मियों को पूरी श्रद्धा से खाना खिलाते ? आज प्रकाश पर्व के अवसर पर गुरु के लंगर का आयोजन करते ? ये किसान है जो जानता है कि अपने हक़ के लिए वो अपने परम् कर्तव्य से पीछे नहीं हट सकते।
उसे हर किसी की भूख का ख़याल है, वो जानता है कि उसका जन्म तुम्हे खिलाने के लिए हुआ है। ये धरती जिसकी गर्भ में हम बैठे हैं ये हमारी जननी है तो वो किसान वो लालन पालन कर रहा है उसे जनक का ओहदा देने में क्या परेशानी? खैर किसान की मांग यह नहीं वो तो बस अपनी फ़रियाद लिए प्रशासन का दरवाजा खटखटा रहा है शायद कोई तो सुनले उसे।
मैंने कई लोगों को कहते सुना कि किसानो के इस आंदोलन से महामारी रौद्र रूप लेगी। पर मैं ये पूछना चाहता हूँ कि क्या क्षेत्र में हर कोई बिमारी से जुड़े निर्देशों का पालन कर रहा है? नहीं, इस क्षेत्र में लोग लापरवाह है।
तो फिर बिमारी के फैलने का दोष किसान के आंदोलन के मत्थे क्यों मढ़ा जाए ? जब इस आंदोलन में इन किसानो को लाठीचर्ज करने वाले पुलिस कर्मियों को खाना परोसते हुए देखता हूँ तो मेरा सीना गदगद हो जाता है। मन करता है बार बार, हर बार शीश नवाऊँ।