बादशाह खान बना अटल बिहारी वाजपेई, क्या नाम बदलने से कम हो जाएगी मरीजों की परेशानियां? : मैं हूँ फरीदाबाद

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नमस्कार! मैं हूँ फरीदाबाद आज काफी दिनों बाद आप सभी से मुलाकात हो रही है। क्या करूँ मुद्दा ही इतना बड़ा है कि मुझसे रुका नहीं गया। सुना है मेरे क्षेत्र के विशालकाय अस्पताल का नाम बदल दिया गया है।

अरे ये वही सरकारी अस्पताल है जहां मेरे प्रांगण में पल रही आवाम अपना इलाज करवाने आती है। अब तो आप समझ ही गए होंगे कि मैं किसीकी बात कर रहा हूँ।

बादशाह खान बना अटल बिहारी वाजपेई, क्या नाम बदलने से कम हो जाएगी मरीजों की परेशानियां? : मैं हूँ फरीदाबाद

मैं बात कर रहा हूँ मेरे क्षेत्र में पलने वाले विशालकाय हाथी की जो अपने आकार से बड़ा है पर कर्मों से धरातल पर रहने लायक भी नहीं है। क्षेत्र का बहुप्रसिद्ध बादशाह खान अस्पताल अब अटल बिहारी वाजपेई अस्पताल बन गया है।

बादशाह खान बना अटल बिहारी वाजपेई, क्या नाम बदलने से कम हो जाएगी मरीजों की परेशानियां? : मैं हूँ फरीदाबाद

पूर्व प्रधानमंत्री को नमन करते हुए इस अस्पताल का नाम तो बदल दिया गया पर इसकी काया पलटना बाकी है। बीके की हालत किसी से छिपी नहीं है, काम करने में आना कानी करना और मरीजों की जान के साथ लापरवाही बरतने के किस्से इस अस्पताल में आम हो गए हैं।

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कुछ महीने पहले ही एक गर्भवती महिला के साथ जो व्यवहार किया गया वो किस्सा याद है आपको? याद नहीं तो मैं आपको एक बार फिर से उंस औरत की कहानी बताता हूँ जो अपनी प्रसव पीड़ा सहते हुए अस्पताल के दरवाजे पर चिकित्सकों और कर्मचारियों से मदद की गुहार लगाती रही पर कोई भी अपना स्ट्रेचर लेकर आगे नहीं आया।

अगर अभी भी आपको याद नहीं आया तो मैं आपको एक और खबर सुनाता हूँ। बीके अस्पताल में बने शौचालय किसी नर्क से कम नहीं है। याद है एक वीडियो सामने आई थी जिसमे अस्पताल के शौचालय लहूलुहान हुए पड़े थे।

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मंजर ऐसा था कि सामने से देख कर इंसान का दिल बैठ जाए। अगर अभी भी आप इस विशालकाय अस्पताल को लेकर भ्रमित हैं तो आपको इसकी लापरवाही का ब्यौरा देने के लिए मेरे पास एक और खबर है।

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माहमारी के इस दौर में जहां सब मास्क लगाना अनिवार्य समझते हैं वहीं बीके में मरीज और चिकित्सक दोनों बिना किसी रोक टोक के अस्पताल में घूमते हैं। न उनपर कोई पाबंदी लगाई जाती है और ना ही उनके खिलाफ कार्रवाई की जाती है।

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अब मेरे निजाम ने अस्पताल का नाम तो बदल दिया पर सुविधाओं का क्या होगा? उनमे बदलाव कब आएगा? कब तक मेरी जनता को अपने इलाज के लिए धक्के खाने पड़ेंगे? आज इस क्षेत्र से जुड़ा आमूमन हर एक परिवार अपना इलाज करवाने के लिए निजी अस्पतालों का दरवाजा खटखटा रहा है।

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पर बीके ओह! माफ की जियेगा अटल बिहारी वाजपेयी की तरफ रुख करने में हर कोई कतराता है। मेरे प्रांगण में मौजूद गरीब लोगों की मजबूरी है कि उन्हें इस अस्पताल में इलाज करवाना पड़ रहा है जहां मरीजो को आए दिन परेशानी का सामना करना पड़ता है।

ऐसा एक दिन नहीं जाता जब अस्पताल में मौजूद कोई मरीज सेवा या असुविधा के चलते परेशान न हुआ हो। मेरे निजाम, चाहे वो बादशाह खान हो या फिर अटल बिहारी वाजपेई अगर असुविधा का पूनिन्दा बना रहा तो इस अस्पताल के होने का कोई लाभ नहीं।