कुछ कर दिखाने का अगर जुनून हो तो कुछ भी असंभव नहीं है। इस दुनिया में इंसान एक धावक है और ये जीवन बाधा दौड़ का एक मैदान । हर इंसान इस मैदान पर दौड़ना तो सीख लेता है लेकिन बाधाओं को पार करने और निरंतर आगे बढ़ते रहने का हुनर हर किसी के पास नहीं होता। जो लोग इस हुनर के साथ पैदा होते हैं उन्हें फर्क नहीं पड़ता कि वह किन परिस्थितियों में पल रहे हैं। उनका ध्यान सिर्फ उस लक्ष्य पर होता है जिसे उन्होंने भेदना है।
मन में लक्ष्य और दिमाग में तत्परता तो कुछ भी कर दिखाने का जोश पैदा हो ही जाता है। यह कहानी भी एक ऐसी महिला आईपीएस ऑफिसर की है जो अपने जीवन में आने वाली तमाम परेशानियों को नजरअंदाज करते हुए आगे बढ़ती गईं।
आज इस मुकाम पर यह पहुंची हैं वो आसान नहीं था। काफी मेहनत थी इसमें। आज भी देश में कई ऐसे क्षेत्र हैं जहां के लोग बेटियों की पढ़ाई पर खर्च करना फ़िज़ूल समझते हैं । आज के प्रगतिशील दौर में भी उनके दिमाग में यही बात घर कर के बैठी है कि बेटियों को तो एक ना एक दिन पराया ही होना है फिर क्यों उनकी पढ़ाई पर खर्च किया जाए। इल्मा अफ़रोज़ का जन्म भी ऐसी ही मानसिकता वाले लोगों के बीच हुआ।
उन्होंने कुछ करने का ठान लिया था। कुछ करने की जब आप ठान लेते हैं तो कोई भी कुछ भी बोले आपको फरक नहीं पड़ता। यूपी के एक शहर मुरादाबाद के छोटे से गांव की एक लड़की जिसने खेतों में काम किया और लोगों के घरों के बर्तन भी साफ किए। लेकिन अपने जज्बे को किसी भी कीमत में कम नहीं होने दिया। एकाग्र लक्ष्य और कड़ी मेहनत ने उसके सपनों को आईपीएस ऑफिसर बनाया।
वह जब 14 साल की थी तभी उनके पिता का निधन हो गया। लेकिन इल्मा ने इस बात पर ध्यान दिया कि अगर किसी चीज को शिद्दत से चाहो तो उसे मिलाने में सारी कायनात आपके साथ होती है।