टोक्यो ओलंपिक के गोल्ड मेडल विजेता नीरज चोपड़ा अपने घर में सबके लाड़ले हैं। नीरज चोपड़ा की दो बहनें हैं व वह इकलौते हैं। नीरज दादी के सबसे अधिक लाड़ले हैं, इतने कि बचपन में शरारत करने पर भी दादी उन्हें डांटने नही देती थी। दादी उनके खान – पान पर विशेष ध्यान दिया करती थीं। नीरज जब स्कूल से घर वापस आते थे
तो उनकी दादी एक कटोरे में मलाई लेकर उसमें शक्कर या बूरा मिलाकर खिलाती थीं तथा साथ ही अपने पास ही बिठाकर एक कटोरा दूध भी उन्हें पिलाती थीं। दादी द्वारा उनके खानपान पर अधिक ध्यान दिए जाने के कारण 12 साल की उम्र में ही उनका वजन 85 किलो हो गया।
नीरज चोपड़ा के छोटे चाचा ने वजन कम करने में उनकी बहुत मदद की। वे ही नीरज को मतलौडा जिम में ले गए। मन नहीं भी होने के बावजूद वे स्कूल से आने के बाद रोज साइकिल से स्कूल जाया करते थे। किसी कारणवश वह जिम बंद हो जाने के बाद वे शिवाजी स्टेडियम के पास एक जिम में जाने लगे। स्टेडियम में नीरज के अनेक दोस्त बने, जिन्होंने उन्हें खेलने के लिए कहा।
बिंझौल निवासी दोस्त जयवीर ने नीरज चोपड़ा को अनेकों खेल खिलवाए। जयवीर को नीरज जेवलिन में अच्छे दिखे। उसके बाद नीरज के रुचि जेवलिन की ओर बढ़ने लगी। जिला स्तर की प्रतियोगिता में टॉप के पश्चात नीरज ने खेल को सीरियस लेना शुरू कर दिया। हरिद्वार में उन्होंने अंडर – 16 में अपना रिकॉर्ड दर्ज किया।
उसके बाद प्रैक्टिस के लिए उन्हें पानीपत ही छोड़ दिया गया, लेकिन थ्रो करने के लिए उन्हें मधुबन या सोनीपत जाना पड़ता था। क्योंकि सिंथैनिक ट्रैक वहीं पर था। ऐसे में लगभग उनके सभी दोस्त पंचकुला में शिफ्ट हो गए। पंचकुला में नीरज अधिकतर प्रतियोगिताओं में टॉप करने लगे।उनकी आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं थी, लेकिन फिर भी उन्होंने खेल को रुकने नहीं दिया। उनकी एक जेवलिन सवा लाख रुपए की आती थी। परिवार के सभी लोगों ने जड़ा मेहनत करना शुरू कर दिया, ताकि उनके खेल में कोई रुकावट न आए।
एक बार नेशनल कैंप से पहले बास्केट बॉल खेलते समय जब नीरज ने रिंग पकड़ा तो उनके शरीर का पूरा वजन आगे चला गया और वे नीचे गिर गए थे। उन्होंने पलस्तर करवाया, इस दौरान उनका फैट बड़ते लगा। नीरज चोपड़ा में पलस्तर ठीक होने से पहले ही काट दिया। फिर पानीपत लाकर उनका इलाज करवाया गया। इस बीच करीब 4 महीनों तक उन्हें खेल से दूर रहना पड़ा था। ठीक होने पश्चात उन्होंने कई गुना मेहनत की और अपना वजन कम किया।
वर्ष 2015 में नीरज चोपड़ा इंडिया कैंप में चयनित हुआ। उन्होंने इंटर यूनिवर्सिटी का भी रिकॉर्ड बनाया। साल 2016 में रियो ओलंपिक में उन्हें बुखार हो गया था, जिस कारण वे सही ढंग से थ्रो नही कर पाए थे। क्वालीफाई मार्क 83 मीटर था जबकि थ्रो 82.24 लगी। उस समय वे 76 सेंटीमीटर से रह गए। इसके 6 दिन बाद ही जब नीरज पौलेंड में वर्ल्ड चैंपियनशिप में खेले तो उन्होंने 86.48 मीटर थ्रो के साथ वर्ल्ड रिकॉर्ड बनाया।
सरकार द्वारा ग्रीन कार्ड के माध्यम से उन्हें ओलंपिक में भेजने की कोशिश की गई, लेकिन ये मान्य नहीं हुआ। फिर 2018 में उन्होंने कॉमनवेल्थ और एशियाड में गोल्ड जीता। नीरज चोपड़ा मिल्खा सिंह के बाद वे दूसरे खिलाड़ी बने, जिन्होंने एक ही सीजन में कॉमनवेल्थ और एशियाड में गोल्ड जीता। साउथ अफ्रीका में प्रैक्टिस के दौरान उनकी कोहनी में फैक्चर हो गया।
मई 2019 में उनका इलाज करवाया गया। इस बीच तीन महीनों तक उन्हें खेल से दूर रहना पड़ा था। वहीं से उन्होंने ओलिंपिक क्वालीफाई किया।उसके बाद जब उन्हें कोरोना हुआ तो तब वे तुर्की में थे, वहां से उन्हें रातों – रात वापिस बुलाया गया। उसके बाद लगातार एक साल नीरज पटियाला में रहे। काफी समय तक नीरज को खेल से दूर रहना पड़ा। अब अनेकों कोशिशों के बाद पुर्तगाल उन्हें भेजा गया।