नमस्कार! मैं हूँ फरीदाबाद। हम सब जानते हैं कि साल 2020 गहरे घाव दे कर गया है। 26 अक्टूबर 2020 एक तारीख जिसने मेरे और अन्य शहरवासियों के पैरों तले जमीन खींच ली। एक लड़की जिसकी आँखों में कुछ करने और आगे बढ़ने के सपने थे उस निकिता की निर्मम हत्या कर दी गई।
उस बच्ची की सिर्फ एक गलती थी कि उसने तौसिफ नाम के दरिंदे को ‘ना’ बोल दिया था। तौसिफ एक सड़कछाप ‘मनचला’ जो निकिता के पीछे सालों से पड़ा था अपनी हार सहन नहीं कर पाया और निकिता की जान ले ली।
जनता ने इस पूरे मुद्दे में हिन्दू मुसलमान के तार जोड़ दिए, पर मैं पूछता हूँ क्या हत्यारों का भी कोई धर्म होता है ? पीर की मज़ार हो या फिर माता का दरबार हर स्थान पर अमन और आस्था का ही सन्देश दिया जाता है। तो फिर निकिता के मामले में ये धर्म की दीवार क्यों आई ? खैर मैं मुद्दे से भटकना नहीं चाहता।
आज मैं आपसे अपने दिल की बात कहने जा रहा हूँ। निकिता को गए अब 2 माह हो चुके हैं और बिटिया को खोने का ग़म एक परिवार को जिस तरह खाल रहा है यह देख कर मेरी नजरें शर्म से झुक गई हैं। कल जब की 2021 की शुरुआत हुई तब निकिता के पिता एक ओहदेदार मंत्री से मिलने पहुँचते हैं।
अपने हाथ में ज्ञापन लिए वह मंत्री जी से वार्ता करने जाते हैं। पर अब मुझे निकिता के इंसाफ को लेकर संशय हो रहा है। जानते हैं उसके पीछे का कारण क्या है? क्योंकि अब निकिता के इंसाफ पर मुआवजे की तलवार लटक गई है। जो परिवार कल तक बेटी के हत्यारों को सजा दिलवाने की मांग कर रहा था।
वही परिवार अब अपने बेटे के लिए सरकारी नौकरी और मुआवजे की मांग कर रहा है। सोचने वाली बात तो यह है कि जिस भाई ने अपनी बहन को खोया है क्या उसके कलेजे पर यह सोचकर सांप नहीं लोटेंगे कि उसकी बहन को अभी तक इंसाफ नहीं मिल पाया।
पर इंसाफ की आग को मुआवजे से बुझाना मान्य नहीं। इस देश ने एक बेटी को खोया है और चंद रुपये और सरकारी नौकरी उसके इंसाफ का गला घोंट रहे हैं।