हरियाणा का दिल कहे जाने वाले जींद जिले में महामारी का ग्रहण मजबूत होता हुआ दिखाई दे रहा है। वैसे तो यहां के बांगर बेल्ट को मजबूत इम्यूनिटी सिस्टम वाला कहा जाता है परंतु यहां संक्रमण की महामारी के जो संकेत मिल रहे हैं उसे कदापि उचित नहीं कहा जा सकता।
दरअसल, यह कोरोना है या कुछ और, यह तो भोले-भाले ग्रामीण नहीं जानते, लेकिन कहते हैं कि अब दो दिन के बुखार के बाद ही सांसें थम जाती हैं। शायद यहां आकर कोरोना की फितरत ही बदल गई है।
ग्रामीणों की बात करें तो उनका कहना हैं कि गांव में युवा सबसे ज्यादा खासी-बुखार की चपेट में हैं और सैंपलिंग करवाने से भी डरते हैं। कहते हैं कि इसी से कोरोना फैलता है और फिर अस्पताल जाना पड़ेगा। अस्पताल गए तो मुक्ति धाम के रजिस्टर में ही एंट्री होगी, घर वापसी की उम्मीद कम ही है।
यह बात ग्रामीणों के मुंह से सच भी लगती है। कारण, एक मई से लेकर अब तक कई गांवों में युवाओं की इन्हीं लक्षणों के साथ मौत हुई है। दो दिन तक बुखार आता है और फिर हार्ट अटैक से मौत हो जाती है। गांव घिमाणा के महिला सरपंच के ससुर साहब सिंह की उनके गांव में ही चार युवाओं की मौत इन्हीं लक्षणों के साथ हुई है।
गांवों में अब सैंपलिंग और वैक्सीन लगवाने से ग्रामीण बच रहे हैं। इसके अलावा गांवों में धूप करने और हवन की धूणी लगाने पर ज्यादा विश्वास बढ़ रहा है। हर गांव में उसकी मान्यता के अनुसार ही धूणी या धूप करने का प्रचलन तेजी से बढ़ रहा है। इसके पीछे ग्रामीणों की सोच है कि जब पशुओं का ही रोग कट जाता है तो इसके आगे कोरोना का भी समाधान होगा।
जींद सिविल अस्पताल के डिप्टी एमएस डॉ. राजेश भोला कहते हैं कि कोरोना के कारण गांव में हालात काफी खराब हैं। उन्होंने स्वयं कभी पिछले 22 साल से सिविल अस्पताल में ऐसे हालात नहीं देखे थे कि मरीजों को इमरजेंसी के बाहर ही चारपाई पर ऑक्सीजन देनी पड़े। गांव से काफी संख्या में गंभीर रोगी अस्पताल पहुंच रहे हैं। इससे बचाव का एक ही तरीका है कि समय रहते मरीज को तुरंत इलाज दिया जाए।